शांति के इस्लामी सिद्धांत के अनुसार, मुसलमानों के लिए किसी भी शासक के खिलाफ हिंसक रूप से विद्रोह करना वैध नहीं है, जब तक कि वे सुरक्षा में इस्लाम की मूल बातों का अभ्यास कर सकते हैं। बल्कि मुसलमानों को धैर्य रखना चाहिए और अहिंसक कार्रवाई के जरिए सुधार को बढ़ावा देना चाहिए। मुसलमानों में से युवा नेता होने का दावा करने वाले कुछ चरमपंथियों ने इसे पूरी तरह बदल दिया। स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम विशेष उल्लेख के योग्य है। सिमी को पोटा और यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था। सिमी के कुछ उद्देश्य के अन्तर्गत ‘खिलाफत’ (खिलाफत) की बहाली, ‘उम्मा’ (मुस्लिम भाईचारे) पर जोर देना और इस्लाम की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए जिहाद की आवश्यकता आदि आते है ।
2007 में स्थापित पीएफआई ने मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन कोध्यान में रखकरएक कैडर-आधारित सामाजिक आंदोलन के रूप में अपना संचालन शुरू किया। हालांकि, पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों को बाद में बैंगलोर बम विस्फोट मामले, केरल के प्रोफेसर के हथेली काटने का मामला, हादिया मामले और आईएसआईएस उमर-अल-हिंदी मामले में शामिल पाया गया। एनआईए ने पीएफआई के खिलाफ अपने एक आरोप पत्र में कहा है कि ‘ पीएफआई अपने गढ़ों के कुछ स्थानों पर मार्शल आर्ट और लाठी और चाकू/तलवार के इस्तेमाल से मुकाबला करने का प्रशिक्षण दे रहा है। इसके अलावा पीएफआई को ‘लव जिहाद’ में लिप्त पाया गया। एनआईए द्वारा जांचे गए 94 मामलों में से 23 ऐसे विवाहों के बारे में माना जाता है कि पीएफआईद्वारा सुगम बनाया गया था। केरल पुलिस ने पीएफआई पर आतंक फैलाने और आतंकी समूहों से फंड हासिल करने का आरोप लगाया है। इसके छात्र विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के महासचिव को हाल ही में प्रवर्तन निर्देशालय (ED) ने देश से भागने की कोशिश करते हुए गिरफ्तार किया था और मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। इतना ही नहीं, इसके अध्यक्ष, ओएमए सलाम को हाल ही में केरल राज्य विदयुत बोर्ड ने अपनी पार्टी के माध्यम से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए निलंबित कर दिया था।
सिमी का पीएफआई के पृष्ठभूमि की कहानी से स्पष्ट संबंध है। पीएफआई वर्तमान में सिमी केप्रतिस्थापन के रूप में कार्य कर रहा है। पीएफआई में शामिल होने से पहले अब्दुल रहमान और अब्दुल हमीद जैसे पीएफआई नेता सिमी के सदस्य थे। जिस तरह सिमी ने मुस्लिम युवकों को भड़काकर देश का शांतिपूर्ण माहौल बिगाड़ा, उसी तरह की राह पर पीएफआई भी चल रहा है। हाल की बेंगलुरु हिंसा पीएफआई की हिंसक कट्टरपंथी कार्यप्रणाली का सबसे बड़ा उदाहरण है। सिमी अतीत में मुस्लिम छात्रों को बदनाम किया और अब पीएफआई उन मुसलमानों की छवि खराब करने पर आमादा है जो बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण हैं और गैर मुसलमानों के साथ सद्भाव में रहना चाहते हैं। मुसलमानों को यह याद रखना चाहिए कि जो लोग हिंसक विद्रोह का आह्वान करते हैं और सरकार को अस्थिर करने के लिए निर्दोष नागरिकों के खिलाफ आतंकवाद का सहारा लेते हैं जो कि इस्लाम में पूरी तरह मना है।