डिप्टी एडिटर राकेश भट्ट की कलम से
भारत मे पेयजल की सुलभता, केवल किसी बर्तन में द्रव्य से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि सामज़िक गरिमा, अवसर व समानता जैसे सार्वभौमिक मुद्दों को भी रेखांकित करती है। सुरक्षित जल आपूर्ति एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का भी आधार होती है, पर फिर भी दुर्भाग्यवश आज भी इसे विश्व स्तर पर इसे उतनी प्रमुखता नहीं दी गई है। एक शोध अनुमान के अनुसार पेयजल से होने वाले रोगों के लिए भारत पर प्रति वर्ष लगभग 42 अरब रूपये का आर्थिक बोझ पड़ता है। भारत में अभी भी लग्भग 50 प्रतिशत से भी कम आबादी के पास पीने का सुरक्षित पानी उपलब्ध है। इस सम्बंध में डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पेयजल ऐसा होना चाहिए जो स्वच्छ, शीतल, स्वादयुक्त तथा गंधरहित हो और उसका पीएच मान 7 से 8.5 के मध्य हो।
मैं अगर स्पष्टता से कह सकूँ, तो यह हम सबकी नैतिक और राजनैतिक विफलता है कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ उच्चस्तरीय तकनीकी नवाचार और सफलता तो है, लेकिन लाखो लोगों के पास साफ़ पीने का पानी नही है । हम पीछे लौट कर चीज़ों को बदल तो नहीं सकते लेकिन हमें अपनी विफलताओं को स्वीकार करना होगा, और इस अवसर का इस्तेमाल, उन प्रणाली गत ख़ामियों को दूर करने में किया जाना होगा जिनसे संकट यह फलता-फूलता रहा है।
वास्तव में जल का शुद्ध होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके माध्यम से ही पूरे शरीर में पोषक तत्व जैसे कि विटामिन, मिनरल और ग्लूकोज प्रभावित होते हैं। खाना खाने के बाद उसे पचाने की क्रिया में पानी की अहम भूमिका होती है। ऐसी स्थिति में यदि शरीर को स्वच्छ जल न मिले तो जो कुछ भी खाया या पीया है, वह निरर्थक ही नहीं बल्कि जानलेवा भी साबित हो सकता है। क्योंकि पचाने की क्रिया में यदि हमारे शरीर में अशुद्ध जल मौजूद है तो वह अन्य खायी गई सामग्री को भी दूषित कर देता है। कई लोगों की नजर में पानी की शुद्धता जरूरी नहीं होती। लेकिन उनकी यह सोच उनके और समाज़ के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
जल निकायों के पर्यावरण प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव कम करने और सकारत्मक और प्रभावी हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसके लिए सामूहिक भागीदारी भी बहुत जरूरी है। तमाम विकसित देश सामूहिक भागीदारी के जरिए अपने पेयजल को शुद्ध बनाने की प्रक्रिया में लगे हैं, लेकिन विकासशील देशों में जागरुकता का अभाव होने की वजह से पेयजल शुद्धता पर उस तरह का ध्यान नहीं दिया जा सका है, जिसकी जरूरत है। इसके लिये यह आवश्यक हैं कि जलदोहन, उनके वितरण तथा प्रयोग के बाद जल प्रवाहन की समुचित व्यवस्था हो। सभी विकास योजनाएं सुविचरित और सुनियोजित हों, कल-कारखाने आबादी से दूर हो आदि ।
इसी क्रम में हम सब अवगत है कि “बाढ़” सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे आम और व्यापक है। बाढ़ पीने के पानी की व्यवस्था के लिए एक विशेष खतरा है क्योंकि बाढ़ का पानी अक्सर दूषित पदार्थ जो उपभोक्ताओं को बीमार कर सकते हैं, को अपने साथ ले आता है। “बाढ़” मानव स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करती हैं। फिर भी, हालांकि पीने के पानी की गुणवत्ता पर बाढ़ के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जाना जाता है, शुद्ध और साफ जल का मतलब है कि वह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अशुद्धियों और रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं से मुक्त होना चाहिए वरना यह हमारे पीने के काम नहीं आ सकता है। पानी को साफ और पीने योग्य बनाने के लिए अब ढेरों तरीके मौजूद हैं, पर पानी को साफ करने का सबसे पुराना तरीका है उसे उबालना ही है। दुनिया भर में आज भी इस परंपरागत तरीके को लाखों लोग अपनाते हैं।
विकास की प्रक्रिया में भारत में बने बड़े बांध सूखा एवं बाढ़ दोनों के लिये जिम्मेदार हैं, यह प्रक्रिया भारतीय चिंतन के अनुरूप नहीं है, इस देश के दर्शनशास्त्र ने कभी भी नदियों की अविरल धारा को अवरुद्ध नहीं किया. संक्षेप में नदियों की प्राकृतिक बाढ़ से दूर-दूर तक के प्रदेशों में हर वर्ष भूजल स्तर कायम रहता था और जमीन में नमी बने रहने से सूखे के प्रकोप से भी रक्षा होती थी. उचित गहराई पर भूजल के प्रवाहित होने से जमीन की धुलाई होती थी और उसकी उपजाऊ शक्ति वर्ष दर वर्ष बनी रहती थी। नहर के पानी की सिंचाई से ज़मीन की धुलाई नहीं हो पाती और धीरे-धीरे जमीन की उर्वरक शक्ति का भी ह्रास होता है नदियों पर किये गए अत्याचारों का फल तो इस देश की जनता को जरूर भोगना पड़ेगा।
इसके साथ ही हैण्डपम्प से जल निकास के लिए पुख्ता नालियां बनाएं एवं उसके पास गन्दगी न होने दें। खुले कुएं के पानी को ब्लीचिंग पाउडर डालकर नियमित रूप से जीवाणु रहित कर ही उसे पीने के काम में लें। प्राइवेट टैंकरों द्वारा वितरित जल में वितरण से आधा घंटा पूर्व टैंकर की क्षमता के अनुसार ब्लीचिंग पाउडर का घोल एवम् जलसंग्रह की टंकी के आसपास स्वच्छ वातावरण रखें। जल में जीवणु का नाश करने के लिए लगभग15 लीटर में 2 क्लोरीन की गोलियाँ (500 मिलीग्राम) या हर 1000 लीटर पानी में 3 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का घोल बनाकर डाले एवं आधे घंटे बाद ही उपयोग में लें। पीने के पानी को परंपरागत तरीके से भी शुद्ध करके जलजनित बीमारियों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। पीने के पानी को स्वच्छ कपड़े से छान लेना चाहिए अथवा फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए। कुएं के पानी को कीटाणुरहित करने के लिए उचित मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग प्रभावी रहता है। तांबे के बर्तन में रखे तो यह अन्य बर्तनों की अपेक्षा सर्वाधिक शुद्ध रहता है। एक गैलेन पानी को दो ग्राम फिटकरी या बीस बूंद टिंचर आयोडीन या ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर शुद्ध किया जा सकता है। चारकोल, बालू युक्त बर्तन से छानकर भी पानी शुद्ध किया जा सकता है।
लेखक, राकेश कुमार भट्ट, विगत लगभग 15 वर्षों से देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में आपदा प्रबंधन, नगर विकास, जल प्रबंधन, एवं पर्यावरण आदि विषयों पर अपने लेख लिखते हैं, विभिन्न समकालीन सामाजिक मुद्दों पर उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं|
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